अशोक सिंघल
अशोकजी सिंघल द्वारा हिन्दू धर्म के उत्थान हेतु किए गए कार्य लोकप्रसिद्ध हैं, परन्तु जो कम ज्ञात है, वो है उनका वेदज्ञान और वेदों एवं वैदिक शिक्षा के प्रसार-प्रचार लिए उनके द्वारा किए गए कार्य।
कानपुर में संघप्रचारक के रूप में कार्य करते हुए अशोकजी अपने गुरुदेव के से वेदाध्ययन के लिए प्रेरित हुए। गुरुदेव वेदों और शास्त्रों में पारङ्गत थे।
संघ के प्रति अपने कर्तव्य और वेदसेवा के प्रति अपनी निष्ठा के बीच फंसने पर उन्होंने तत्कालीन सरसंघचालक गुरुजी गोलवलकर जी से इस दुविधा से निकलने में मार्गदर्शन माँगा। जब गुरुजी गोवलकर ने उन्हें वैदिक ज्ञान की उनकी इच्छा का अनुसरण करने की आज्ञा दी, तब उनके गुरुदेव ने यह परामर्श दिया कि वेदज्ञान और संघ के सद्कार्य दोनों साथ किये जा सकते हैं। इस प्रकार हिन्दूधर्म की सेवा में उनकी बृहद् यात्रा प्रारम्भ हुई। जिसमें संघ के अन्तर्गत विश्व हिन्दू परिषद् का गठन भी शामिल था।
अशोकजी की यह दृढ़ मान्यता थी कि मात्र वेदों के संरक्षण और विस्तार द्वारा ही भारतीय संस्कृति जीवित रह सकती है। अपने कार्यों के द्वारा अशोकजी ने तीन विश्व वेदसम्मेलन आयोजित करवाए। जिनमें पहला सन्-१९९२ में हुआ। ये सम्मेलन विश्व के सर्वोच्च वेदपण्डितों का अद्भुत संगम था। इन्होंने विश्व के वेदपण्डितों को एक साथ लाने का कार्य किया और यह बताया कि हिन्दू जीवन और संस्कृति में वेदों का कितना योगदान है। इनके नेतृत्व में विश्व हिन्दू परिषद् ने अनेक वेदविद्यालय प्रारम्भ किए, जो आज भी चल रहे हैं। अशोकजी के कहने पर उनके परिवार ने प्रयाग स्थित पैतृक निवास का एक भाग ऐसे ही एक वेदविद्यालय को समर्पित कर दिया।