श्री मुनिकुल ब्रह्मचर्याश्रम वेद संस्थान, राजस्थान के भीलवाड़ा में अरावली पर्वत श्रृंखला में स्थित एक छोटे से ग्राम में है| लुप्त प्रायः भारतीय धर्म सस्ंकृति की धरोहर वेद की रक्षार्थ तथा ग्रामीण क्षैत्र में उच्च अध्ययन की निःशुल्क व्यवस्था करना के उद्देश्य से लगभग 139 वर्ष पूर्व संत श्री नारायण दास जी ने एक संस्कृत पाठशाला के रूप में वर्त्तमान वेद विद्यालय की  स्थापना हुई तथा सन् 1985 में  डॉ॰ बदरीनारायण जी पंचोली के अथक प्रयास से वेद विद्यालय को नवजीवन प्रदान किया गया|

वेद विद्यालय में चारों वेदों की विभिन्न शाखाओं(ऋग्वेद-शाकल, शुक्ल यजुर्वेद-माध्यन्दिनी,काण्व, सामवेद-राणायनी,कौथुम, अथर्ववेद-शौनक व पैप्पलाद) का अध्ययनाध्यापन होता है। साथ ही राज्स्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के माध्यम से कक्षा 6 से 12 तक वरीष्ठोपाध्याय संस्कृत विद्यालय संचालित है ।

वैदिक ज्ञान एवं आधुनिक शिक्षा के उच्च अध्ययन हेतु शास्त्री (बी.ए. ), आचार्य (एम.ए.) की कक्षाएँ भी विद्यालय में  संचालित की जा रही हैं|

1985 से अब तक लगभग 1200 छात्र इस संस्था में वेदाध्ययन का लाभ प्राप्त कर चुके हैं। यहाँ के पढे छात्र आज देश के विभन्न प्रसिद्ध स्थानों पर सेवा दे रहें हैं।

अध्यापन में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए संस्था के प्रथम गुरू श्री रामजी लाल जी पालीवाल को  तत्कालीन राज्यपाल एम चेन्नारेड्डी के द्वारा मधुसूदन ओझा पुरस्कार दिया गया है।

श्री मुनिकुल ब्रह्मचर्याश्रम वेद संस्थान को 2019 के “भारतात्मा अशोकजी सिंघल वैदिक पुरस्कार- उत्तम वेदविद्यालय” प्रदान किया जा रहा है|