नाम – वेदमूर्ति- श्री बी॰के॰ लक्ष्मीनारायण भट्ट
पितृनाम – वेदमूर्ति श्री कृष्ण भट्ट
मातृनाम – श्रीमती रुक्मिणी देवी
जन्मतिथि – वैशाख कृष्ण १० (१९४९ ई॰)
जन्म स्थान – शृङ्गेरी
श्री लक्ष्मीनारायण भट्ट गुरुजी ने शृङ्गेरी स्थित श्रीमठीयपाठशाला में वेदमूर्ति श्री रामभट्टजी के सान्निध्य में ऋग्वेद का मूलान्त अध्ययन किया और फिर कालटी क्षेत्र में वेदमूर्ति श्री घनपाठी सामकसुब्रह्मण्य भट्टजी के सान्निध्य में घनान्त अध्ययन कर वहीं पाठशाला में मुख्याध्यापक पद पर तीन वर्ष के लिए नियुक्त हुए।
श्री सत्यदेव जी ब्रह्मचारी के निर्देशानुसार पुण्यक्षेत्रों में वेदों का प्रचार करते हुए गोकर्ण में श्री मेधादक्षिणामूर्ति वेदभवन विद्यालय में १९७८ से २००७ तक आप ऋग्वेद के प्राचार्य के पद पर रहे।
आपने प्रत्यक्ष रूप से पांच सौ से अधिक शिष्यों को तथा शिष्य-प्रशिष्य परंपरा के द्वारा परोक्ष रूप से एक हजार से भी अधिक शिष्यों को वेदमार्ग पर प्रवर्तित किया है। आपने अपने पुत्र को भी वेदमार्ग पर प्रवर्त कर वैयाकरण बनाया है।
आपने दो सौ से अधिक ऋग्वेद यज्ञों में वेदपुरुष की आराधना कर याजकों की सुविधा के लिए ऋग्वेदहोमविधि ग्रन्थ को लिखा है। आपने कर्नाटक सरकार तथा शृङ्गेरी आदि कई मठों में परीक्षाधिकारी के रूप में सन्निर्णय कर योग्य जनों को प्रेरित किया है।
शृङ्गेरी, एडतोर, स्वर्णवल्य आदि मठों ने तथा महिशूरदत्तपीठ, दत्ताश्रम आदि संस्थाओं ने आपको आस्थान विद्वान्, वेदनिधि, ऋग्वेदरत्न आदि उपाधियों के साथ स्वर्ण आभूषणों से अलंकृत किया है।
वेदों के अष्टविकृति पाठों के प्रचार के लिए आप अपने शिष्यों के साथ अनेक स्थानों पर जटाघन पाठ करते और करवाते रहे हैं। सरकारी प्राचार्य पद से सेवानिवृत्ति के उपरान्त भी आप अध्यापन से असेवानिवृत्त रहते हुए “जब तक इस शरीर में प्राण है तब तक वेदसेवा का आचरण हो” ऐसे संकल्प के साथ शरीरसुख के प्रतिकूल जाकर भी वेदविद्यार्थियों को वात्सल्यपूर्वक शृङ्गेरी में अपने घर पर ही उपदेशपूर्वक पढाते हैं।
वेदमूर्ति श्री बी॰के॰ लक्ष्मीनारायण भट्ट जी को ही २०२० ईस्वी में भारतात्मा-अशोकजी सिंघल-वेदपुरस्कार के अन्तर्गत “वेदार्पितजीवन पुरस्कार” प्रदान किया गया।